आंत्रिक शांति के बिना गरीब होता है मनुष्य - वैदिक सागर
एक राजा के दरबार में कोई आम ले आया। राजा ने कभी आम नहीं खाया था इसलिए उसने पूछा, "यह क्या है" जो व्यक्ति आम लाया था, उसने कहा, "महाराज ! यह आम है। यह बहुत ही अच्छा फल है, आप इसे खाकर देखिए।"
राजा ने कहा, "मुझें नहीं खाना है। मेरे दरबार में जो लोग बैठे हैं इन्हें खिलाओ। ये लोग खाकर मुझे बताएंगे कि ये आम कैसा फल है? "राजा ने अपने प्रधान को आम दिया और उसे खाने के लिए कहा । उसने खाया और कहा, "महाराज यह तो बहुत बढ़िया" है। यह नरम है, मीठा है और इसमें रस भी है।
राजा ने कहा, "अब भी मुझे समझ में नहीं आया।" आखिर दरबार में एक अन्य विद्वान सज्जन को आम दिया गया ताकि वह खाकर राजा को उसके चारे में सटीक जानकारी दे सके मगर वह खाने की बजाय आम को काटकर सीधे राजा के पास ले आए और कहा, "राजन इसे आप खाइए। जब तक आप नहीं खाएंगे तब तक दूसरों के खाने से आपको कुछ पता नहीं लगेगा कि यह क्या चीज है। यह व्यक्तिगत अनुभव की बात है।
"राजा आम को चखता है और चखने के बाद कहता है, "हां, अब समझ में आगया कि आम क्या होता है।" आज इस संसार में शांति की चर्चा करने वाले बहुत लोग हैं पर जब तक आप शांति का स्वयं अनुभव नहीं का लेंगे तब तक यह सिर्फ एक "शब्द" मात्र है। हमें शांति अनुभव करने की जरूरत है। चाहे हमारे पास कितना भी पैसा हो परंतु आंतरिक शांति के अभाव में हम गरीब के गरीब है। जब तक हमारे अंदर कुछ खाली है तब तक हमारे लिए कुछ भी नहीं है। जिस दिन हमरे अंदर शांति का अनुभव हो जाएगा हमें शांति - शांति चिल्लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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