Skip to main content

यह हैं हिन्दू सनातन धर्म की दस महत्वपूर्ण बातें । जो हर हिन्दू को जानना चाहिए? - वैदिक सागर

यह हैं हिन्दू सनातन धर्म की दस महत्वपूर्ण बातें । जो हर हिन्दू को जानना चाहिए?

हिंदुत्व केवल एक धर्म ही नहीं है बल्कि यह एक सफल जीवन जीने का तरीके के रूप में भी देखा जा सकता है. हिन्दू धर्म की अनेको विशेषताएं है तथा इसे सनातन धर्म की भी उपाधि दी गई है।


भागवत गीता में सनातन का अभिप्राय बताते हुए कहा गया है की सनातन वह है जो न तो अग्नि, न वायु, न पानी तथा न अस्त्र से नष्ट हो सकता है यह तो वह है जो दुनिया में स्थित हर सजीव एवं निर्जीव में व्याप्त है. धर्म का अर्थ होता है जीवन को जीने की कला. हिन्दू सनातन धर्म की जड़े आध्यात्मिक विज्ञान में है।



सम्पूर्ण हिन्दू शास्त्र में विज्ञान एवं अध्यात्म के संबंध में बाते बताई गई है. यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय में ऐसा वर्णन आया है की जीवन की सभी समस्याओं का समाधान विज्ञान एवं आध्यात्मिक समस्याओं के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए।

आज हम आपको हिन्दू धर्म से जुडी 10 ऐसे महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में बताएंगे जिनका महत्व हर हिन्दू धर्म से जुड़े व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. यह ऐसी जानकारी है जो किसी भी व्यक्ति को हिन्दू धर्म को समझने में मदद कर सकता है।

हिन्दू सनातन धर्म में बताये गए 10 कर्तव्य :- 
1 . सन्ध्यावादन,
2 . व्रत,
3 . तीर्थ,
4 . संस्कार,
5 . उत्सव,
6 . दान,
7 .सेवा,
8 यज्ञ पाठ,
9 .वेद पाठ,
10 . धर्म प्रचार .

ये है 10 सिद्धांत :-
1 .एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति अर्थात एक ही ईश्वर है दुसरा नहीं।
2 . आत्मा अमर है।
3 .पुनर्जन्म होता है।
4 मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है।
5 . संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है।
6 . कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है।
7 . ब्रह्माण्ड अनित्य और परिवर्तनशील है।
8 . संध्यावंदन- ध्यान ही सत्य है।
9 . दान ही पूण्य है।
10 . वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है।



10 महत्वपूर्ण कार्य :-
1.प्रायश्चित करना,
2.उपनयन, दीक्षा देना-लेना,
3.श्राद्धकर्म,
4.बिना सिले सफेद वस्त्र पहनकर परिक्रमा करना,
5.शौच और शुद्धि,
6.जप-माला फेरना,
7.व्रत रखना,
8.दान-पुण्य करना,
9.धूप, दीप या गुग्गल जलाना,
10.कुलदेवता की पूजा.

ये हे 10 उत्सव :-
नवसंवत्सर, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, पोंगल-ओणम, होली, दीपावली, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्‍टमी, महाशिवरात्री और नवरात्रि. इनके बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करें।

सनातन धर्म से जुडी 10 महत्वपूर्ण पूजाएं :-
गंगा दशहरा, आंवला नवमी पूजा, वट सावित्री, दशामाता पूजा, शीतलाष्टमी, गोवर्धन पूजा, हरतालिका तिज, दुर्गा पूजा, भैरव पूजा और छठ पूजा. ये कुछ महत्वपूर्ण पूजाएं है जो हिन्दू करता है. हालांकि इनके पिछे का इतिहास जानना भी जरूरी है।

सनातन धर्म के 10 पवित्र पेय :-
1.चरणामृत,
2.पंचामृत,
3.पंचगव्य,
4.सोमरस,
5.अमृत,
6.तुलसी रस,
7.खीर,
9.आंवला रस और
10.नीम रस .
आप इनमे से कितने रस का समय समय पर सेवन करते है ? ये सभी रस अमृत के समान माने जाते है।

हिन्दू धर्म में प्रयोग किये जाने वाले 10 फूल :-
1.आंकड़ा,
2.गेंदा,
3.पारिजात,
4.चंपा,
5.कमल,
6.गुलाब,
7.चमेली,
8.गुड़हल,
9.कनेर, और
10.रजनीगंधा.
हर देवी दवताओं को अलग अलग प्रकार के फूलों को अर्पित किया जाता है। परन्तु आज के युग में लोग देवी देवताओ पर गुलाब एवं गेंदे का पुष्प चढ़ाकर ही इतिश्री कर लेते जो की पुराणों में गलत बताया गया है।

ये है 10 धर्मिक स्थल :-
12 ज्योतिर्लिंग,
51 शक्तिपीठ,
7 पूरी,
7 नगरी,
4 धाम,
4 मठ,
10 पर्वत, 10 गुफाएं,
5 सरोवर,
10 समाधि स्थल,
4 आश्रम.



10 महाविद्याए :-
1.काली,
2.तारा,
3.त्रिपुरसुंदरी,
4. भुवनेश्‍वरी,
5.छिन्नमस्ता,
6.त्रिपुरभैरवी,
7.धूमावती,
8.बगलामुखी,
9.मातंगी और
10.कमला.
बहुत कम लोग जानते हैं कि ये 10 देवियां कौन है. नवदुर्गा की पूजा के पश्चात इन 10 देवियो के पूजा इनके बारे में विस्तृत ढंग से जानने के पश्चात ही करनी चाहिए. बहुत से व्यक्ति इन 10 विद्याओं की पूजा भगवान शिव की पत्नी के रूप में की जाती जो की अनुचित है.

10 यम नियम :-
1.अहिंसा,
2.सत्य,
3.अस्तेय
4.ब्रह्मचर्य और
5.अपरिग्रह.
6.शौच
7.संतोष,
8.तप,
9.स्वाध्याय और
10.ईश्वर-प्रणिधान.
ये 10 ऐसे यम और नियम है जिनके बारे में प्रत्येक हिन्दू को जानना चाहिए यह सिर्फ योग के नियम ही नहीं है ये वेद और पुराणों के यम-नियम हैं. क्यों जरूरी है? क्योंकि इनके बारे में आप विस्तार से जानकर अच्छे से जीवन यापन कर सकेंगे. इनको जानने मात्र से ही आधे संताप मिट जाते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

समुंदर मंथन के दौरान प्राप्त चौदह रत्न - वैदिक सागर

समुंदर मंथन के दौरान प्राप्त चौदह रत्न - वैदिक सागर  1. कालकूट विष समुद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया। इससे तात्पर्य है कि अमृत (परमात्मा) हर इंसान के मन में स्थित है। अगर हमें अमृत की इच्छा है तो सबसे पहले हमें अपने मन को मथना पड़ेगा। जब हम अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही बाहर निकलेंगे। यही बुरे विचार विष है। हमें इन बुरे विचारों को परमात्मा को समर्पित कर देना चाहिए और इनसे मुक्त हो जाना चाहिए। 2. कामधेनु समुद्र मंथन में दूसरे क्रम में निकली कामधेनु। वह अग्निहोत्र (यज्ञ) की सामग्री उत्पन्न करने वाली थी। इसलिए ब्रह्मवादी ऋषियों ने उसे ग्रहण कर लिया। कामधेनु प्रतीक है मन की निर्मलता की। क्योंकि विष निकल जाने के बाद मन निर्मल हो जाता है। ऐसी स्थिति में ईश्वर तक पहुंचना और भी आसान हो जाता है। 3. उच्चैश्रवा घोड़ा समुद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। इसका रंग सफेद था। इसे असुरों के राजा बलि ने अपने पास रख लिया। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखें तो उच्चैश्रवा घोड़ा मन की गति का प्रतीक है। मन की ग...

भगवान को ये लोग हैं सबसे प्यारे - हिंदी प्रेरणादायक कहानी - वैदिक सागर

भगवान को ये लोग हैं सबसे प्यारे, जानें क्या आप हैं उन में शामिल एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था। वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में लगा देता था। यहां तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवद्-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था। एक सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए। राजा ने देव को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा,‘‘महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?’’ देव बोले,‘‘राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमें सभी भजन करने वालों के नाम हैं।’’ राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा,‘‘कृपया देखिए तो इस पुस्तक में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?’’ देव महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ उलटने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया। राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा,‘‘महाराज ! आप चिंतित न हों, आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है। वास्तव में यह मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता, और इसीलिए मेरा नाम...

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत् - गीता श्लोक - वैदिक सागर

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न  त्यजेत् |  सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः || ४८ || सहजम् – एकसाथ उत्पन्न; कर्म – कर्म; कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र; स-दोषम् – दोषयुक्त; अपि – यद्यपि; न – कभी नहीं; त्यजेत् – त्यागना चाहिए; सर्व-आरम्भाः – सारे उद्योग; हि – निश्चय ही; दोषेण – दोष से; धूमेन – धुएँ से; अग्निः – अग्नि; इव – सदृश; आवृताः – ढके हुए | प्रत्येक उद्योग (प्रयास) किसी न किसी दोष से आवृत होता है, जिस प्रकार अग्नि धुएँ से आवृत रहती है | अतएव हे कुन्तीपुत्र! मनुष्य को चाहिए कि स्वभाव से उत्पन्न कर्म को, भले ही वह दोषपूर्ण क्यों न हो, कभी त्यागे नहीं | तात्पर्य : बद्ध जीवन में सारा कर्म भौतिक गुणों से दूषित रहता है | यहाँ तक कि ब्राह्मण तक को ऐसे यज्ञ करने पड़ते हैं, जिनमें पशुहत्या अनिवार्य है | इसी प्रकार क्षत्रिय चाहे कितना ही पवित्र क्यों न हो, उसे शत्रुओं से युद्ध करना पड़ता है | वह इससे बच नहीं सकता | इसी प्रकार एक व्यापारी को चाहे वह कितना ही पवित्र क्यों न हो, अपने व्यापार में बने रहने के लिए कभी-कभी लाभ को छिपाना पड़ता है, या कभी-कभी कालाबाजार चलाना पड़ता...